रुपये की ऐतिहासिक गिरावट
डॉलर के मुकाबले रुपये में रिकॉर्ड गिरावट ने हाल ही में भारतीय अर्थव्यवस्था और आम लोगों की जेब पर गहरा असर डाला है। अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में भारतीय रुपया इंट्राडे ट्रेडिंग के दौरान 78.84 के स्तर तक लुढ़क गया, जो अब तक का सबसे निचला स्तर है। यह स्थिति न केवल निवेशकों के लिए चिंता का विषय है, बल्कि आम उपभोक्ताओं के लिए भी महंगाई का खतरा बढ़ा रही है। इस लेख में, हम इस गिरावट के कारणों, इसके प्रभाव, और क्लोजिंग रेट पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
रुपये में गिरावट के प्रमुख कारण
डॉलर के मुकाबले रुपये में रिकॉर्ड गिरावट के पीछे कई वैश्विक और घरेलू कारक जिम्मेदार हैं। अमेरिकी डॉलर की मजबूती, जो हाल ही में डॉलर इंडेक्स के 104.9 के स्तर तक पहुंचने से और बढ़ी, ने रुपये पर दबाव डाला। इसके अलावा, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की भारतीय शेयर बाजारों से भारी बिकवाली और कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें भी रुपये की कमजोरी के लिए जिम्मेदार हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीतियों और वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंकाओं ने भी इस स्थिति को और गंभीर बनाया।
इंट्राडे में 78.84 का निचला स्तर
11 जून 2025 को, अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया इंट्राडे ट्रेडिंग के दौरान 78.84 प्रति डॉलर तक फिसल गया, जो इसका ऐतिहासिक निचला स्तर था। यह गिरावट कई कारकों का परिणाम थी, जिसमें विदेशी मुद्रा की मांग में वृद्धि और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के सीमित हस्तक्षेप शामिल थे। हालांकि, दिन के अंत तक रुपये ने कुछ सुधार दिखाया। डॉलर के मुकाबले रुपये में रिकॉर्ड गिरावट ने निवेशकों और व्यापारियों के बीच हलचल मचा दी, क्योंकि यह स्तर पहले कभी नहीं देखा गया था।
क्लोजिंग रेट: कितने पर बंद हुआ रुपया?
दिन के कारोबार के अंत में, भारतीय रुपया 78.92 प्रति डॉलर पर बंद हुआ, जो पिछले क्लोजिंग रेट की तुलना में 0.35 पैसे की गिरावट दर्शाता है। हालांकि यह इंट्राडे के निचले स्तर 78.84 से थोड़ा बेहतर था, फिर भी यह रुपये की कमजोरी को दर्शाता है। डॉलर के मुकाबले रुपये में रिकॉर्ड गिरावट ने बाजार विशेषज्ञों को इस बात पर विचार करने के लिए मजबूर किया कि क्या RBI भविष्य में और सक्रिय हस्तक्षेप करेगा।
आम लोगों पर क्या होगा असर?
डॉलर के मुकाबले रुपये में रिकॉर्ड गिरावट का सीधा असर आम उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ेगा। भारत एक आयात-प्रधान देश है, और कच्चे तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स, और खाद्य तेल जैसे आयातित सामानों की कीमतें बढ़ सकती हैं। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि से परिवहन लागत बढ़ेगी, जिसका असर रोजमर्रा की वस्तुओं पर पड़ेगा। इसके अलावा, विदेशी यात्रा और शिक्षा भी महंगी हो सकती है, क्योंकि डॉलर में भुगतान करना अब पहले से ज्यादा खर्चीला होगा।
शेयर बाजार और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
डॉलर के मुकाबले रुपये में रिकॉर्ड गिरावट का असर भारतीय शेयर बाजार पर भी देखने को मिला। BSE सेंसेक्स और NSE निफ्टी में गिरावट दर्ज की गई, क्योंकि विदेशी निवेशकों ने भारी बिकवाली की। रुपये की कमजोरी ने आयात-निर्भर कंपनियों, जैसे तेल और गैस, और ऑटोमोबाइल सेक्टर को प्रभावित किया। हालांकि, निर्यात-आधारित कंपनियां, जैसे IT और फार्मास्युटिकल्स, को इस स्थिति से कुछ फायदा हो सकता है, क्योंकि उनकी आय डॉलर में बढ़ेगी।
RBI की भूमिका और भविष्य की संभावनाएं
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने रुपये की गिरावट को नियंत्रित करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग किया है, लेकिन इस बार हस्तक्षेप सीमित रहा। विशेषज्ञों का मानना है कि RBI भविष्य में ब्याज दरों में कटौती या अन्य नीतिगत उपायों पर विचार कर सकता है। डॉलर के मुकाबले रुपये में रिकॉर्ड गिरावट ने यह सवाल उठाया है कि क्या RBI अपनी रणनीति में बदलाव करेगा। वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं, जैसे अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नीतियां और तेल की कीमतें, रुपये के भविष्य को और प्रभावित कर सकती हैं।
निष्कर्ष: सतर्क रहने की जरूरत
डॉलर के मुकाबले रुपये में रिकॉर्ड गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक चेतावनी है। यह स्थिति न केवल महंगाई और आयात बिल को बढ़ा सकती है, बल्कि निवेशकों का भरोसा भी कमजोर कर सकती है। आम लोगों को अपने खर्चों पर नजर रखने और निवेशकों को सावधानी बरतने की जरूरत है। सरकार और RBI को मिलकर ऐसी नीतियां अपनानी होंगी जो रुपये को स्थिर करें और अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाएं। इस चुनौतीपूर्ण समय में सूझबूझ और सही निर्णय ही हमें इस संकट से उबार सकते हैं।










