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Bhagat Singh की जीवनी: स्वतंत्रता संग्राम के नन्हे शेर

On: July 2, 2025 2:30 PM
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Bhagat Singh
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Bhagat Singh भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रखर क्रांतिकारियों में से एक थे। उनकी वीरता, निडरता और देशभक्ति ने उन्हें युवाओं के लिए प्रेरणा का प्रतीक बनाया। कम उम्र में ही उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई और अपने बलिदान से भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा दी। आइए, Bhagat Singh की प्रेरणादायक जीवनी को जानें।

प्रारंभिक जीवन और प्रेरणा

Bhagat Singh का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर (अब पाकिस्तान में फैसलाबाद) के बंगा गांव में हुआ था। उनके पिता किशन सिंह और माता विद्यावती एक देशभक्त परिवार से थे। भगत सिंह का परिवार जलियांवाला बाग हत्याकांड (1919) और अन्य ब्रिटिश अत्याचारों से गहरे प्रभावित था। बचपन से ही उनमें देशभक्ति की भावना प्रबल थी। उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में पढ़ाई की, जहां वे क्रांतिकारी विचारों से प्रेरित हुए।

क्रांतिकारी गतिविधियों की शुरुआत

Bhagat Singh ने कम उम्र में ही क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) से जुड़कर ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष शुरू किया। 1928 में, साइमन कमीशन के विरोध में लाला लाजपत राय की मृत्यु ने उन्हें गहरा आघात पहुंचाया। इसके जवाब में, Bhagat Singh और उनके साथियों ने ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या की, जिसे “लाहौर षड्यंत्र” के नाम से जाना गया। इस घटना ने उन्हें पूरे देश में प्रसिद्ध कर दिया।

असेंबली बम कांड और विचारधारा

1929 में, Bhagat Singh और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में बम फेंके। उनका उद्देश्य हिंसा नहीं, बल्कि ब्रिटिश सरकार का ध्यान भारत की जनता की मांगों की ओर खींचना था। बम फेंकने के बाद, उन्होंने गिरफ्तारी दी और नारे लगाए, “इंकलाब जिंदाबाद!” उनकी यह कार्रवाई क्रांतिकारी आंदोलन का प्रतीक बन गई। जेल में रहते हुए, उन्होंने समाजवाद और समानता के विचारों को अपनी लेखनी के माध्यम से व्यक्त किया। उनकी पुस्तकें और पत्र आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं।

बलिदान और मुकदमा

Bhagat Singh को लाहौर षड्यंत्र मामले में गिरफ्तार किया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया। जेल में, उन्होंने भूख हड़ताल कर ब्रिटिश सरकार की जेल नीतियों का विरोध किया। उनकी मांग थी कि कैदियों के साथ मानवीय व्यवहार किया जाए। 23 मार्च 1931 को, Bhagat Singh, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर जेल में फांसी दे दी गई। मात्र 23 वर्ष की आयु में उनका बलिदान भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक मील का पत्थर बना।

व्यक्तिगत जीवन और मूल्य

Bhagat Singh का जीवन सादगी और साहस से भरा था। उन्होंने कभी शादी नहीं की और अपना जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया। वे एक उत्कृष्ट लेखक और विचारक थे, जिन्होंने मार्क्सवाद और समाजवाद का गहन अध्ययन किया। उनका मानना था कि स्वतंत्रता केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक भी होनी चाहिए। उनकी निडरता और विचारधारा ने उन्हें युवाओं का आदर्श बनाया।

विरासत और प्रभाव

Bhagat Singh का बलिदान आज भी भारत के युवाओं को प्रेरित करता है। उनकी कहानी फिल्मों, किताबों और साहित्य में जीवित है। उनके विचार समानता, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के लिए आज भी प्रासंगिक हैं। भारत सरकार ने उनके सम्मान में कई स्मारक और योजनाएं शुरू की हैं। Bhagat Singh का नाम देशभक्ति और क्रांति का पर्याय है। Bhagat Singh एक ऐसे क्रांतिकारी थे, जिन्होंने अपने छोटे से जीवन में भारत के स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा दी। उनकी निडरता, विचारधारा और बलिदान ने उन्हें अमर बना दिया। Bhagat Singh की जीवनी हमें सिखाती है कि सच्ची देशभक्ति और साहस के साथ कोई भी व्यक्ति इतिहास बदल सकता है।

Anand K.

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