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Homi Bhabha: भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक की अद्भुत यात्रा

On: July 29, 2025 1:35 PM
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Homi Bhabha
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Homi Bhabha: होमी जहांगीर भाभा, जिन्हें भारत के परमाणु विज्ञान का पितामह कहा जाता है, एक ऐसे वैज्ञानिक थे जिन्होंने न केवल भारत के वैज्ञानिक परिदृश्य को बदला, बल्कि देश को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दी। उनकी दूरदृष्टि, नेतृत्व और वैज्ञानिक प्रतिभा ने भारत के परमाणु कार्यक्रम की नींव रखी, जिसने आज भारत को एक परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया है। 2025 में, जब भारत अपने वैज्ञानिक विकास को गर्व के साथ देखता है, होमी भाभा की यात्रा और योगदान को याद करना प्रासंगिक और प्रेरणादायक है।

होमी भाभा का प्रारंभिक जीवन

होमी जहांगीर भाभा का जन्म 30 अक्टूबर 1909 को मुंबई के एक प्रतिष्ठित पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता जहांगीर भाभा एक प्रसिद्ध वकील थे, और उनकी मां मेहरबाई भाभा एक कला प्रेमी थीं। बचपन से ही होमी में विज्ञान और कला के प्रति गहरी रुचि थी। उन्होंने मुंबई के एल्फिंस्टन कॉलेज और रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की। इसके बाद, 1927 में वे इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गए, जहां उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की, लेकिन जल्द ही उनकी रुचि भौतिकी की ओर मुड़ गई।

कैम्ब्रिज में भाभा ने प्रसिद्ध वैज्ञानिक पॉल डिराक के मार्गदर्शन में परमाणु भौतिकी और क्वांटम मैकेनिक्स में शोध किया। 1933 में, उन्होंने अपनी पीएचडी पूरी की और “भाभा स्कैटरिंग” (Bhabha Scattering) की खोज की, जो पॉजिट्रॉन और इलेक्ट्रॉन के बीच टकराव की प्रक्रिया को समझाने वाला एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। इस खोज ने उन्हें वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय में प्रसिद्धि दिलाई।

भारत लौटने का निर्णय

1940 में, जब द्वितीय विश्व युद्ध अपने चरम पर था, भाभा भारत लौट आए। वे उस समय भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बैंगलोर में प्रोफेसर के रूप में शामिल हुए। भाभा का मानना था कि भारत जैसे विकासशील देश के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी ही प्रगति का आधार हैं। उन्होंने देखा कि भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान की कमी थी, और इसे दूर करने के लिए उन्होंने एक मजबूत संस्थागत ढांचे की आवश्यकता महसूस की।

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) की स्थापना

1945 में, होमी भाभा ने टाटा ट्रस्ट के सहयोग से मुंबई में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) की स्थापना की। यह संस्थान भारत में बुनियादी और लागू विज्ञान के क्षेत्र में शोध का केंद्र बन गया। TIFR ने भौतिकी, गणित, और बाद में जैव विज्ञान जैसे क्षेत्रों में विश्वस्तरीय शोध को बढ़ावा दिया। भाभा की दूरदृष्टि थी कि भारत को वैज्ञानिक स्वतंत्रता हासिल करने के लिए अपने शोध संस्थानों की जरूरत है, और TIFR इस दिशा में पहला कदम था।

भारत के परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत

होमी भाभा का सबसे बड़ा योगदान भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की नींव रखना था। 1948 में, उन्होंने भारत सरकार को परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए एक कार्यक्रम शुरू करने का प्रस्ताव दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उनकी दृष्टि का समर्थन किया, और उसी वर्ष परमाणु ऊर्जा आयोग (Atomic Energy Commission) की स्थापना हुई। भाभा को इसका पहला अध्यक्ष नियुक्त किया गया।

1954 में, भाभा ने भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) की स्थापना की, जो पहले ट्रॉम्बे में परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान (Atomic Energy Establishment) के नाम से जाना जाता था। BARC ने भारत के परमाणु रिएक्टरों, ईंधन चक्र, और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए आधार तैयार किया। भाभा का मानना था कि परमाणु ऊर्जा भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने और औद्योगिक विकास को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

Homi Bhabha
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भारत का पहला परमाणु रिएक्टर: अप्सरा

1956 में, भाभा के नेतृत्व में भारत ने अपना पहला परमाणु रिएक्टर “अप्सरा” शुरू किया। यह रिएक्टर पूरी तरह स्वदेशी तकनीक पर आधारित था और इसे बनाने में भाभा की वैज्ञानिक विशेषज्ञता और नेतृत्व ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अप्सरा ने भारत को उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल किया, जिनके पास परमाणु रिएक्टर तकनीक थी। इसके बाद, 1960 में CIRUS रिएक्टर शुरू हुआ, जो कनाडा के सहयोग से बनाया गया था।

परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग पर जोर

भाभा ने हमेशा परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग पर बल दिया। The Hindu के अनुसार, उन्होंने 1955 में जेनेवा में आयोजित “Atoms for Peace” सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया और परमाणु ऊर्जा को ऊर्जा उत्पादन, चिकित्सा, और कृषि जैसे क्षेत्रों में उपयोग करने की वकालत की। उनकी इस दृष्टि ने भारत को परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में मदद की।

1974 का पोखरण परीक्षण

हालांकि होमी भाभा 1966 में एक विमान दुर्घटना में असमय निधन से पहले पोखरण परीक्षण को नहीं देख सके, लेकिन 1974 में भारत के पहले परमाणु परीक्षण “स्माइलिंग बुद्धा” की नींव उनके द्वारा ही रखी गई थी। BARC और उनके द्वारा स्थापित वैज्ञानिक ढांचे ने इस ऐतिहासिक उपलब्धि को संभव बनाया।

होमी भाभा की नेतृत्व शैली

भाभा न केवल एक वैज्ञानिक थे, बल्कि एक उत्कृष्ट प्रशासक और दूरदर्शी नेता भी थे। उन्होंने TIFR और BARC में युवा वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित किया और उन्हें वैश्विक मंच पर शोध करने का अवसर दिया। उनकी नेतृत्व शैली में वैज्ञानिक स्वतंत्रता, सहयोग, और नवाचार पर जोर था। India Today के अनुसार, भाभा ने हमेशा स्वदेशी तकनीक पर ध्यान दिया और विदेशी सहायता पर निर्भरता कम करने की वकालत की।

व्यक्तिगत जीवन और रुचियां

होमी भाभा एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। विज्ञान के अलावा, उन्हें शास्त्रीय संगीत, पेंटिंग, और साहित्य में गहरी रुचि थी। वे एक कुशल चित्रकार थे और उनकी पेंटिंग्स आज भी TIFR में प्रदर्शित हैं। उनकी यह रचनात्मकता उनकी वैज्ञानिक सोच को और समृद्ध करती थी।

होमी भाभा की विरासत

होमी भाभा का निधन 24 जनवरी 1966 को स्विट्जरलैंड के मॉन्ट ब्लांक में एक विमान दुर्घटना में हुआ, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है। BARC और TIFR आज भारत के प्रमुख वैज्ञानिक संस्थान हैं, और भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम दुनिया में सबसे उन्नत कार्यक्रमों में से एक है। Economic Times के अनुसार, भारत की 22 परमाणु रिएक्टरों की कुल क्षमता 6,780 मेगावाट है, और यह भाभा की दूरदृष्टि का परिणाम है।

भारत के लिए प्रेरणा

होमी भाभा की कहानी हर भारतीय, खासकर युवा वैज्ञानिकों, के लिए प्रेरणा है। उनकी दृष्टि थी कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से भारत आत्मनिर्भर और शक्तिशाली बने। उनके द्वारा स्थापित संस्थानों ने लाखों वैज्ञानिकों को प्रेरित किया है, और उनकी “स्वदेशी” सोच आज भी ISRO और DRDO जैसे संगठनों में देखी जा सकती है।

क्या करें उत्साही और छात्र?

  1. विज्ञान में रुचि बढ़ाएं: भौतिकी, परमाणु विज्ञान, और अंतरिक्ष अनुसंधान में करियर के अवसर तलाशें।
  2. TIFR और BARC से प्रेरणा: इन संस्थानों के शोध कार्यों और स्कॉलरशिप्स के बारे में जानकारी लें।
  3. होमी भाभा की जीवनी पढ़ें: उनकी आत्मकथा और लेख आपको प्रेरित करेंगे।
  4. सामुदायिक जागरूकता: सोशल मीडिया पर #HomiBhabha और #IndianScience जैसे हैशटैग्स के साथ उनकी उपलब्धियों को साझा करें।

होमी जहांगीर भाभा भारत के उन गिने-चुने वैज्ञानिकों में से हैं जिन्होंने न केवल विज्ञान के क्षेत्र में क्रांति लाई, बल्कि देश की प्रगति के लिए एक मजबूत नींव रखी। चंद्रयान, गगनयान, और भारत के परमाणु रिएक्टर उनकी दूरदृष्टि का जीवंत प्रमाण हैं। 2025 में, जब भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी में नई ऊंचाइयों को छू रहा है, होमी भाभा की अद्भुत यात्रा हमें प्रेरित करती है कि सपने और मेहनत से कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है। क्या आप होमी भाभा की कहानी से प्रेरित हैं? अपने विचार कमेंट में साझा करें!

Anand K.

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