Jaishankar Russia Visit : भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर की 19 से 21 अगस्त 2025 तक मॉस्को की तीन दिवसीय यात्रा ने वैश्विक कूटनीति में एक नया मोड़ ला दिया है। यह यात्रा ऐसे समय में हुई है, जब भारत और अमेरिका के बीच रूसी तेल खरीद को लेकर तनाव बढ़ रहा है। अमेरिका ने भारत पर रूसी तेल खरीदने के लिए 25% अतिरिक्त शुल्क लगाया है, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय वस्तुओं पर कुल शुल्क 50% तक पहुंच गया है। इस लेख में हम जयशंकर की इस महत्वपूर्ण यात्रा, इसके उद्देश्यों, और अमेरिका द्वारा दी गई प्रतिबंधों की चेतावनी के प्रभावों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
यात्रा का पृष्ठभूमि और उद्देश्य
एस. जयशंकर की मॉस्को यात्रा का प्राथमिक उद्देश्य भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग (IRIGC-TEC) की 26वीं बैठक में सह-अध्यक्षता करना था, जिसमें रूस के प्रथम उप-प्रधानमंत्री डेनिस मंटुरोव उनके समकक्ष थे। यह आयोग व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देने का प्रमुख मंच है। इस यात्रा का एक अन्य महत्वपूर्ण लक्ष्य रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की इस वर्ष के अंत में भारत यात्रा की तैयारियों को अंतिम रूप देना था।
इसके अतिरिक्त, जयशंकर ने रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के साथ द्विपक्षीय वार्ता की और रूस के प्रमुख विद्वानों और थिंक टैंक प्रतिनिधियों के साथ भारत-रूस संबंधों, वैश्विक भू-राजनीति और भारत के दृष्टिकोण पर चर्चा की। यह यात्रा भारत-रूस के “विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी” को और मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम थी।
अमेरिका की प्रतिबंध चेतावनी
जयशंकर की यात्रा का समय इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अमेरिका द्वारा भारत पर रूसी तेल खरीद के लिए लगाए गए अतिरिक्त 25% शुल्क के ठीक बाद हुई। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 6 अगस्त 2025 को एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसमें भारत के रूसी तेल खरीदने पर दंड के रूप में यह शुल्क लगाया गया। यह शुल्क दो चरणों में लागू किया जाएगा: पहला 25% शुल्क 7 अगस्त से प्रभावी हो चुका है, और दूसरा 25% (कुल 50%) 27 अगस्त से लागू होगा, जब तक कि कोई नई बातचीत न हो।
अमेरिका का तर्क है कि भारत का रूसी तेल खरीदना रूस के यूक्रेन पर आक्रमण को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देता है, क्योंकि यह रूस की अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है। हालांकि, भारत ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा है कि उसकी ऊर्जा खरीद राष्ट्रीय हितों और बाजार की गतिशीलता पर आधारित है। 2019-20 में भारत के कुल तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी मात्र 1.7% थी, जो 2024-25 में बढ़कर 35.1% हो गई, जिससे रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया। यह वृद्धि मुख्य रूप से रूस द्वारा दी गई छूट और पश्चिमी देशों द्वारा रूसी तेल पर लगाए गए प्रतिबंधों के बाद हुई।
भारत की स्थिति और प्रतिक्रिया
भारत ने अमेरिका के इस कदम को “अनुचित, अन्यायपूर्ण और अनुचित” करार दिया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत अपनी आर्थिक संप्रभुता की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगा। भारत का तर्क है कि रूसी तेल की खरीद उसकी ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सस्ता और विश्वसनीय है। इसके अलावा, भारत ने यह भी बताया कि पश्चिमी देश, विशेष रूप से अमेरिका, रूस से यूरेनियम, पैलेडियम और उर्वरकों जैसे उत्पाद आयात करना जारी रखे हुए हैं, जो दोहरे मापदंड को दर्शाता है।
जयशंकर ने मॉस्को में अपने भाषण में भारत-रूस व्यापार में असंतुलन को संबोधित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। 2024-25 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार $68.7 बिलियन तक पहुंच गया, लेकिन भारत का निर्यात केवल $4.88 बिलियन था, जिसके परिणामस्वरूप $58.9 बिलियन का व्यापार घाटा हुआ। जयशंकर ने सुझाव दिया कि व्यापार और गैर-शुल्क बाधाओं को हटाने, भुगतान तंत्र को सुचारू करने, और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर जैसे कनेक्टिविटी परियोजनाओं को बढ़ावा देकर इस असंतुलन को कम किया जा सकता है।
रूस की प्रतिक्रिया
रूस ने भी अमेरिका के प्रतिबंधों की आलोचना की है। रूसी दूतावास के उप-प्रमुख रोमन बाबुश्किन ने कहा कि यदि भारतीय सामान अमेरिकी बाजार में प्रवेश करने में कठिनाई का सामना करते हैं, तो रूस भारतीय निर्यात का स्वागत करेगा। उन्होंने अमेरिकी प्रतिबंधों को “गैरकानूनी प्रतिस्पर्धा का हथियार” करार दिया और कहा कि यह भारत-रूस ऊर्जा सहयोग को प्रभावित नहीं करेगा। बाबुश्किन ने यह भी उल्लेख किया कि भारत और रूस के बीच व्यापार पिछले कुछ वर्षों में सात गुना बढ़ा है, और दोनों देश रूबल और रुपये में भुगतान को और मजबूत करने की दिशा में काम कर रहे हैं।
रूस ने भारत को रक्षा क्षेत्र में “पसंदीदा साझेदार” के रूप में भी संबोधित किया, और संयुक्त परियोजनाओं जैसे सुखोई सु-30 और ब्रह्मोस मिसाइल का उल्लेख किया। इसके अलावा, रूस ने भारत को अपने जेट इंजन विकास में सहायता की पेशकश की, जो भारत की आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
वैश्विक भू-राजनीति और भारत की रणनीति
जयशंकर की यात्रा और अमेरिका की प्रतिबंध चेतावनी ने भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को एक बार फिर रेखांकित किया है। भारत ने हमेशा अपनी विदेश नीति को स्वतंत्र और बहुध्रुवीय विश्व के पक्ष में रखा है। वह न तो पश्चिमी देशों के दबाव में अपनी नीतियों को बदलता है और न ही किसी एक गुट के साथ पूरी तरह से संरेखित होता है।
हालांकि, अमेरिका द्वारा लगाए गए शुल्क भारत के लिए आर्थिक चुनौतियां पेश करते हैं। अमेरिकी बाजार भारतीय निर्यातकों के लिए महत्वपूर्ण है, और 50% शुल्क से भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। विशेष रूप से, यह भारतीय टेक उद्योग और रोजगार सृजन को प्रभावित कर सकता है। दूसरी ओर, भारत रूस के साथ अपने दीर्घकालिक संबंधों को भी महत्व देता है, खासकर रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र में।
भविष्य की संभावनाएं
जयशंकर की यात्रा ने भारत-रूस संबंधों को और मजबूत करने की दिशा में कई संभावनाएं खोली हैं। दोनों देशों ने भारत-यूरेशियन आर्थिक संघ मुक्त व्यापार समझौते को जल्द से जल्द अंतिम रूप देने की प्रतिबद्धता जताई है। इसके अलावा, भारत और रूस ने 2030 तक $100 बिलियन के द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ठोस कदम उठाने का फैसला किया है।
रूस ने यह भी आश्वासन दिया है कि वह भारत को तेल आपूर्ति जारी रखेगा और तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) और परमाणु ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की संभावनाएं तलाशेगा। जयशंकर ने रूसी कंपनियों को भारत में निवेश और संयुक्त उद्यमों के लिए आमंत्रित किया, जो भारत की $4 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था और 7% की विकास दर को देखते हुए एक आकर्षक अवसर हो सकता है।
एस. जयशंकर की रूस यात्रा ने भारत की कूटनीतिक चतुराई और रणनीतिक स्वायत्तता को एक बार फिर प्रदर्शित किया है। अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों की चेतावनी के बावजूद, भारत ने रूस के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने का स्पष्ट संदेश दिया है। यह यात्रा न केवल भारत-रूस व्यापार और ऊर्जा सहयोग को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण रही, बल्कि वैश्विक भू-राजनीति में भारत की स्थिति को और स्पष्ट करने में भी सहायक रही। जैसे-जैसे रूस और भारत अपनी साझेदारी को और गहरा करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत अमेरिका के साथ अपने संबंधों को कैसे संतुलित करता है और अपनी राष्ट्रीय हितों की रक्षा करता है।















