Sardar Vallabhbhai Patel, जिन्हें “लौह पुरुष” के नाम से जाना जाता है, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के नायक और एकीकृत भारत के निर्माता थे। उनकी दूरदर्शिता, दृढ़ nिश्चय और नेतृत्व ने भारत को एक मजबूत राष्ट्र के रूप में स्थापित किया। Sardar Vallabhbhai Patel का जीवन साहस, समर्पण और देशभक्ति की मिसाल है। आइए, उनकी प्रेरणादायक जीवनी को जानें।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
Sardar Vallabhbhai Patel का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता झवेरभाई पटेल और माता लाडबाई साधारण जीवन जीते थे। सरदार पटेल ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूलों में पूरी की और कठिन परिस्थितियों में स्वाध्याय से वकालत की पढ़ाई की। 36 वर्ष की आयु में, वे बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड गए और लंदन के मिडिल टेम्पल से कानून की डिग्री हासिल की। भारत लौटकर, उन्होंने अहमदाबाद में वकालत शुरू की और अपनी मेहनत से ख्याति अर्जित की।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
Sardar Vallabhbhai Patel ने 1917 में चंपारण सत्याग्रह के दौरान महात्मा गांधी से प्रेरित होकर स्वतंत्रता संग्राम में कदम रखा। उन्होंने गुजरात के खेड़ा सत्याग्रह (1918) और बारडोली सत्याग्रह (1928) का नेतृत्व किया, जहां उन्होंने किसानों के हक के लिए ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष किया। बारडोली आंदोलन की सफलता के बाद, उन्हें “सरदार” की उपाधि मिली। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेता बने और असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
भारत के एकीकरण में भूमिका
स्वतंत्रता के बाद, Sardar Vallabhbhai Patel भारत के पहले गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि 562 रियासतों का भारतीय संघ में विलय था। हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर जैसे क्षेत्रों को एकजुट करने में उनकी कूटनीति और दृढ़ता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हैदराबाद के ऑपरेशन पोलो और जूनागढ़ के विलय में उनकी रणनीति ने भारत की एकता को मजबूत किया। उनकी इस उपलब्धि ने उन्हें “लौह पुरुष” की उपाधि दिलाई।
व्यक्तिगत जीवन और मूल्य
Sardar Vallabhbhai Patel का जीवन सादगी और अनुशासन से भरा था। उनकी पत्नी झवेरबा का निधन जल्दी हो गया, और उन्होंने अपने दो बच्चों, मणिबेन और दयाभाई, की परवरिश की। वे एक कुशल वक्ता और रणनीतिकार थे, जिन्होंने हमेशा जनता के हितों को प्राथमिकता दी। उनकी निष्ठा और देशभक्ति ने उन्हें एक आदर्श नेता बनाया। वे धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक एकता में विश्वास रखते थे।
निधन और विरासत
Sardar Vallabhbhai Patel का निधन 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में दिल का दौरा पड़ने से हुआ। उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी विरासत जीवित है। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी, जो गुजरात में उनकी स्मृति में बनाया गया, विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति है और उनकी एकता की भावना का प्रतीक है। Sardar Vallabhbhai Patel को 1991 में मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। Sardar Vallabhbhai Patel एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने भारत को एकजुट और शक्तिशाली बनाने में अपनी जिंदगी समर्पित की। उनकी कूटनीति, नेतृत्व और देशभक्ति आज भी हमें प्रेरित करती है। Sardar Vallabhbhai Patel की जीवनी सिखाती है कि दृढ़ संकल्प और जनसेवा के साथ कोई भी असंभव लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।















