शेयर बाजार में भूचाल: 13 जून 2025 को क्या हुआ?
13 जून 2025 का दिन भारतीय शेयर बाजार के लिए एक काला दिन साबित हुआ। सेंसेक्स में 1200 अंकों से अधिक की गिरावट देखी गई, जो 80,491.98 पर बंद हुआ, जबकि निफ्टी 400 अंकों से ज्यादा लुढ़ककर 24,488.20 पर आ गया। इस Stock Market Crash ने BSE में लिस्टेड कंपनियों के मार्केट कैपिटल में ₹7 लाख करोड़ का भारी नुकसान किया। निवेशकों में हड़कंप मच गया, और कई लोग अपने पोर्टफोलियो को लेकर चिंतित हो उठे। इस गिरावट के पीछे कई घरेलू और वैश्विक कारक जिम्मेदार थे, जिन्होंने मिलकर बाजार को इस स्तर तक नीचे खींच लिया। आइए, इस Stock Market Crash के प्रमुख कारणों को विस्तार से समझते हैं और जानते हैं कि निवेशकों के लिए इसका क्या मतलब है।
वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव: मध्य पूर्व में अस्थिरता का असर
Stock Market Crash का सबसे बड़ा कारण मध्य पूर्व में बढ़ता भू-राजनीतिक तनाव रहा। 13 जून 2025 को इजराइल और ईरान के बीच तनाव अपने चरम पर पहुंच गया, जिसने वैश्विक बाजारों में हलचल मचा दी। तेल की आपूर्ति बाधित होने की आशंका ने निवेशकों में डर का माहौल पैदा कर दिया। भारत, जो अपनी तेल जरूरतों का 85% आयात करता है, के लिए यह स्थिति बेहद नकारात्मक थी। कच्चे तेल की कीमतों में 5% की तेजी ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ाया, जिसका असर शेयर बाजार पर साफ दिखा। इसके अलावा, रूस-यूक्रेन युद्ध से संबंधित अनिश्चितताओं ने भी वैश्विक व्यापार और निवेशकों के मनोबल को प्रभावित किया। इन कारकों ने मिलकर Stock Market Crash को और गहरा कर दिया।
विदेशी निवेशकों की बिकवाली: FPI का बाजार से मोहभंग
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) की भारी बिकवाली ने इस Stock Market Crash को और तेज कर दिया। 2025 की शुरुआत से ही FPIs भारतीय बाजारों से लगातार पूंजी निकाल रहे हैं। अप्रैल 2025 तक उन्होंने ₹13,730 करोड़ की इक्विटी बेची थी, और जून में भी यह सिलसिला जारी रहा। अमेरिका में ट्रेजरी यील्ड में बढ़ोतरी और ट्रम्प प्रशासन की संरक्षणवादी नीतियों ने FPIs को जोखिम भरे उभरते बाजारों, जैसे भारत, से दूरी बनाने के लिए मजबूर किया। इसके अलावा, अमेरिकी डॉलर की मजबूती ने भी उभरते बाजारों में निवेश को कम आकर्षक बना दिया। इस बिकवाली का सबसे ज्यादा असर बैंकिंग, IT, और FMCG जैसे सेक्टर्स पर पड़ा, जो आमतौर पर FPI के पसंदीदा सेक्टर माने जाते हैं। इस तरह, FPI की बिकवाली ने Stock Market Crash को और भयावह बना दिया।
उच्च वैल्यूएशन की चिंता: बुलबुले का डर
पिछले कुछ महीनों में भारतीय शेयर बाजार में जबरदस्त तेजी देखी गई थी। सितंबर 2024 में सेंसेक्स और निफ्टी ने अपने ऑल-टाइम हाई को छुआ था, लेकिन यह तेजी कई विशेषज्ञों को टिकाऊ नहीं लग रही थी। बाजार का प्राइस-टू-अर्निंग (P/E) रेशियो 25 के पार पहुंच गया था, जो ऐतिहासिक औसत से काफी ऊपर था। इस उच्च वैल्यूएशन ने Stock Market Crash का खतरा बढ़ा दिया था। 13 जून को निवेशकों ने मुनाफावसूली शुरू कर दी, जिससे बाजार में भारी बिकवाली देखी गई। विशेष रूप से मिड-कैप और स्मॉल-कैप स्टॉक्स में ज्यादा गिरावट देखी गई, क्योंकि इनका वैल्यूएशन और भी ज्यादा फुला हुआ था। इस तरह, बाजार की यह चिंता कि तेजी का बुलबुला फट सकता है, Stock Market Crash का एक प्रमुख कारण बनी।
कमजोर वैश्विक संकेत: ग्लोबल मार्केट में मंदी की आहट
वैश्विक शेयर बाजारों में भी 13 जून को भारी गिरावट देखी गई, जिसका असर भारतीय बाजार पर पड़ना लाजमी था। जापान का निक्केई इंडेक्स 3% और हॉन्गकॉन्ग का हेंगसेंग इंडेक्स 2.5% नीचे बंद हुआ। अमेरिका में मंदी की आशंका और ट्रम्प प्रशासन की टैरिफ नीतियों ने वैश्विक निवेशकों का विश्वास डगमगाया। इसके अलावा, यूरोप में ऊर्जा संकट और मुद्रास्फीति की चिंताओं ने भी बाजारों को प्रभावित किया। वैश्विक स्तर पर इस बिकवाली का असर भारत जैसे उभरते बाजारों पर भी पड़ा। भारतीय बाजार, जो वैश्विक संकेतों के प्रति संवेदनशील है, इस मंदी से अछूता नहीं रह सका। इस तरह, कमजोर वैश्विक संकेतों ने Stock Market Crash को और बढ़ावा दिया।
तकनीकी संकेतकों का असर: मंदी की ओर इशारा
तकनीकी विश्लेषण के नजरिए से भी 13 जून का Stock Market Crash अप्रत्याशित नहीं था। निफ्टी और सेंसेक्स अपने 200-दिन के मूविंग एवरेज से नीचे फिसल गए, जो बाजार में मंदी का मजबूत संकेत माना जाता है। इसके अलावा, निफ्टी में “शूटिंग स्टार” कैंडलस्टिक पैटर्न देखा गया, जो ट्रेंड रिवर्सल की ओर इशारा करता है। रिलेटिव स्ट्रेंथ इंडेक्स (RSI) भी ओवरबॉट जोन से नीचे आया, जिसने निवेशकों में घबराहट बढ़ाई। इन तकनीकी संकेतकों ने ट्रेडर्स को बिकवाली के लिए प्रेरित किया, जिससे बाजार और नीचे चला गया। इस तरह, तकनीकी कमजोरी ने Stock Market Crash को और गंभीर बना दिया।
निवेशकों के लिए सबक: धैर्य और रणनीति की जरूरत
इस Stock Market Crash ने निवेशकों को एक बार फिर याद दिलाया कि शेयर बाजार में अस्थिरता कोई नई बात नहीं है। लंबी अवधि के निवेशकों को ऐसी गिरावट में घबराने की जरूरत नहीं है। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि मजबूत फंडामेंटल वाली कंपनियों में निवेश का यह अच्छा मौका हो सकता है। डायवर्सिफिकेशन, नियमित पोर्टफोलियो रिव्यू, और सिस्टमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान (SIP) जैसी रणनीतियां जोखिम को कम कर सकती हैं। साथ ही, निवेशकों को भावनात्मक निर्णय लेने से बचना चाहिए और बाजार की गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए। इस तरह, सही रणनीति और धैर्य के साथ इस Stock Market Crash को अवसर में बदला जा सकता है।
बाजार का भविष्य: रिकवरी की उम्मीद
हालांकि 13 जून का Stock Market Crash निवेशकों के लिए एक बड़ा झटका था, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय बाजार की बुनियाद मजबूत है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की स्थिर मौद्रिक नीतियां और कॉरपोरेट आय में सुधार बाजार को सहारा दे सकता है। Q4 आय सीजन और मॉनसून की प्रगति भी बाजार की दिशा तय करेगी। विश्लेषकों का अनुमान है कि 2025 के मध्य तक सेंसेक्स 78,500 के स्तर तक पहुंच सकता है। निवेशकों को सतर्क रहते हुए लंबी अवधि की रणनीति पर ध्यान देना चाहिए। इस तरह, यह Stock Market Crash अस्थायी हो सकता है, और बाजार जल्द ही रिकवरी की राह पर लौट सकता है।










